भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जहाँ से ख़ुशबुओं का सिलसिला है / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:13, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

जहाँ से ख़ुशबुओं का सिलसिला है
हमारा बस वहीं दौलतकदा है

अँधेरों से कहो अब दूर भागें
मुहब्बत का उजाला हो रहा है

कि मेरा हौसला बढ़ता है तुझ से
मुख़ालिफ़, तू ही मेरा रहनुमा है

अगर तू सुन सके तो ग़ौर से सुन
मेरे अंदर का इन्सां मर चुका है

यूँ लगता है ‘अजय’ चश्मे का पानी
शुआ-ए-हुस्न से उबला हुआ है