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"झूठे को सारे लोग क्यूँ सच्चा समझते हैं / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

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09:22, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

झूठे को सारे लोग ही सच्चा समझते हैं
नकली मुखौटे को ही ये चेहरा समझते हैं

हम पार कर के आए हैं दरया-ए-आग को
दर्दे जिगर का गीत से रिश्ता समझते हैं

हैरान हूँ ये सोच के आख़िर है वज्ह क्या
सब प्यार को ही आग का दर्या समझते हैं

दौलत का ऐसा हो गया उनको नशा कि अब
हर अच्छे आदमी को वो पगला समझते हैं

‘अज्ञात’ आज तक तुझे समझा नहीं कोई
दिखता है जैसा सब तुझे वैसा समझते हैं