भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उसका यूँ मुझसे रूठना अच्छा लगा मुझे / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:30, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

उसका यूँ मुझसे रूठना अच्छा लगा मुझे
अंजानी भीड़ में कोई अपना लगा मुझे

मुद्दत के बाद वो जो अचानक मिले तो फिर
मरकज़ पे जैसे वक़्त भी ठहरा लगा मुझे

दुश्मन के हर फरेब को हँसते हुए सहा
अपनों की बेवफ़ाई से झटका लगा मुझे

करता रहा गुहार मुसलसल वो न्याय की
हर लफ़्ज़ बेजुबान का सच्चा लगा मुझे

क़दमों में बैठ माँ के ‘अजय’ बंदगी जो की
बिगड़ा हुआ जो काम था बनता लगा मुझे