भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुआओं के असर को ख़ुद कभी यूँ आज़माना तुम / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:31, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
दुआओं के असर को ख़ुद कभी यूँ आज़माना तुम
किसी के ज़ख़्म पर थोड़ा कभी मरहम लगाना तुम
समंदर में उतर जाना हुनर अपना दिखाना तुम
सफ़ीने के बिना इस पार से उस पार जाना तुम
मसाइल से न घबरा कर कभी तुम ख़ुदक़ुशी करना
अंधेरों में उम्मीदों के चराग़ों को जलाना तुम
मिलें रुस्वाईयाँ तुमको उठाये उँगलियाँ कोई
मुहब्बत का कभी ऐसा तमाशा मत बनाना तुम
कि जैसे छलनी हो कर भी बजे है बांसुरी मीठी
किसी भी हाल में रहना हमेशा मुस्कुराना तुम