भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जफ़ा समझे, वफ़ा समझे, भला समझे, बुरा समझे / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:33, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

जफ़ा समझे, वफ़ा समझे, भला समझे, बुरा समझे
उसे तर्जीह क्या देना, जो ख़ुद को ही ख़ुदा समझे

अकड़ कर रहने वालों को यहाँ इज़्ज़त नहीं मिलती
उसे सब प्यार करते हैं सभी को जो सगा समझे

गदा-ए-इश्क़ समझे है, तो कोई मनचला हमको
नहीं जब ख़ुद को हम समझे, क्या कोई दूसरा समझे

हुई ग़फ़लत कभी ऐसी कि तुम को क्या बताएं अब
अधूरे काम को भी हम कभी पूरा हुआ समझे

उन्हें जो भी लगा अच्छा मेरे बारे में वो समझा
मगर ‘अज्ञात’ को यारो नहीं वो हैं ज़रा समझे