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"मेरे क़दमों में अगर आवारगी होती नहीं / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

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10:01, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

मेरे क़दमों में अगर आवारगी होती नहीं
मंज़िले मक़सूद भी हासिल कभी होती नहीं

जिस्मे मखमल को अगर मैंने छुआ होता कभी
ज़िंदगी मेरी यक़ीनन खुरदरी होती नहीं

पी लिया होता अगर मकरंद तेरा, ज़िंदगी
इस तरह क़ाबू से बाहर तिश्नगी होती नहीं

लाज़िमी है पेश करना एक अच्छा शे‘र भी
क़ाफ़िया पैमाई से तो शाइरी होती नहीं

एक शकुनी जैसा जो किरदार न होता ‘अजय’
फिर महाभारत के जैसी त्रासदी होती नहीं