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"सफ़र पे आज वही कश्तियाँ निकलती हैं / वसीम बरेलवी" के अवतरणों में अंतर

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10:36, 2 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण

सफ़र पे आज वही कश्तियाँ निकलती हैं
जिन्हें ख़बर है हवाएं भी तेज़ चलती हैं

मेरी हयात से शायद वो मोड़ छूट गये
बग़ैर सम्तों के राहें जहां निकलती हैं

हमारे बारे में लिखना, तो बस यही लिखना
कहां की शमअ हैं किन महफ़िलों में जलती हैं

बहुत क़रीब हुए जा रहे हो, सोचो तो
कि इतनी कुरबतें जिस्मों से कब संभलती हैं

'वसीम' आओ, इन आंखों को ग़ौर से देखो
यही तो हैं जो मेरे फ़ैसले बदलते हैं।