भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इक कहानी-सी दिल पर लिखी रह गयी / वसीम बरेलवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वसीम बरेलवी |अनुवादक= |संग्रह=मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:38, 2 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण
इक कहानी सी दिल पर लिखी रह गई
वह नज़र जो मुझे देखती रह गई
रंग सारे ही कोई चुरा ले गया
मेरी तस्वीर अधूरी पड़ी रह गई
लोग बाज़ार में आ के बिक भी गये
मेरी कीमत लगी की लगी रह गई
वह तो कमरे से उठकर चला भी गया
बात करती हुई ख़ामुशी रह गई
दो उजाले अंधेरों में खो भी गये
हाथ मलती हुई चांदनी रह गई
बस वही अब हवा की निगाहों में हैं
जिन चराग़ों में कुछ रौशनी रह गई
वह भी चाहे, तो पूरी न हो ऐ 'वसीम'
ज़िन्दगी में कुछ ऐसी कमी रह गई।