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"अड़सठ का होने पर / सवाईसिंह शेखावत" के अवतरणों में अंतर

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अड़सठ वर्ष का होने पर सोचता हूँ
 
अब तक ग़ैर की ज़मीन पर ही जिया
 
एक आधी-अधूरी और उधारी जिंदगी
 
समय को कोसते हुए कविताएँ लिखीं
 
ग़म की और छूँछी खुशी की भी
 
अक्सर डींग भरी और दैन्य भरी
 
भुला बैठा कि एक दिन मरना भी है
 
  
लेकिन कल से फ़र्क दिखेगा साफ़
 
अपनी रोज़मर्रा जिंदगी जीते हुए अब
 
हर पल बेहतर होने की कोशिश करूँगा
 
धीरजपूर्वक जानूँगा घनी चाहत का राज
 
वृक्षों से सीखूँगा उम्र में बढ़ने की कला
 
ताकि हो सके दुनियाँ फिर से हरी-भरी
 
अपराजेय आत्मा के लिए दुआ करूँगा
 
अपनी धरा, व्योम और दिक् में मरूँगा।
 
 
(ताद्यूश रूजे़विच की कविता से अनुप्रेरित)
 

11:10, 17 अक्टूबर 2018 का अवतरण