भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक क़तरा भी जहाँ बेमौत मारा जाएगा / विनय कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय कुमार |संग्रह=क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है / विनय क...)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:11, 29 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

एक क़तरा भी जहाँ बेमौत मारा जाएगा।
जायज़ा लेने वहाँ दरिया दुबारा जाएगा।

आदमी के फ़ल्सफ़े दरिया समझ सकता नहीं
आपका हर लफ़्ज़ पानी से सुधारा जाएगा।

तोड़ता हूँ रोज़ गांधी को ज़रा सा खीझकर
कह गए थे, नाम मेरा भी पुकारा जाएगा।

सब ज़मीनें तो नहीं हमने बुहारीं आज तक
अहद है, अब आसमानों को बुहारा जाएगा।

छटपटाएंगे तुम्हारे हाथ सोने के लिए
ज़हन में पिघला हुआ सोना उतारा जाएगा।

तख़्त के नीचे पड़े उस एक बटुए के लिए
सोच भी सकते नहीं थे, ताज हारा जाएगा।

सब दिए देने लगे शातिर अंधेरों को पनाह
अब इन्हीं की रोशनी में चांद मारा जाएगा।