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मेरी आँखें हैं माँ जैसी | मेरी आँखें हैं माँ जैसी | ||
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हाथ पिता जैसे | हाथ पिता जैसे | ||
− | + | चेहरा-मोहरा मिलता होगा ज़रूर | |
− | चेहरा-मोहरा मिलता होगा | + | कुटुम्ब के किसी आदमी से । |
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हो सकता है मिलता हो दुनिया के पहले आदमी से | हो सकता है मिलता हो दुनिया के पहले आदमी से | ||
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मेरे उठने-बैठने का ढंग | मेरे उठने-बैठने का ढंग | ||
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बोलने-बतियाने में हो उन्हीं में से किसी एक का रंग | बोलने-बतियाने में हो उन्हीं में से किसी एक का रंग | ||
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बहुत सम्भव है मैं होऊँ उनका अंश | बहुत सम्भव है मैं होऊँ उनका अंश | ||
− | + | जिन्होंने देखे हों दुनिया को सुन्दर बनाने के सपने | |
− | जिन्होंने देखे हों दुनिया को | + | |
− | + | ||
क्या पता गुफ़ाओं से पहले-पहल निकलने वाले रहे हों मेरे अपने | क्या पता गुफ़ाओं से पहले-पहल निकलने वाले रहे हों मेरे अपने | ||
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या फिर पुरखे रहे हों जगद्गुरू शिल्पी | या फिर पुरखे रहे हों जगद्गुरू शिल्पी | ||
− | + | गढ़ गए हों दुनिया भर के मन्दिरों में मूर्तियाँ | |
− | गढ़ गए हों दुनिया भर के | + | |
− | + | ||
उकेर गए हों भित्ति-चित्र | उकेर गए हों भित्ति-चित्र | ||
+ | कौन जाने कोई पुरखा मुझ तक पहुँचा रहा हो ऋचाएँ | ||
+ | और धुन रहा हो सिर । | ||
− | + | निश्चित ही मैं सुरक्षित बीज हूँ सदियों से दबा धरती में | |
− | + | सुनता आया हूँ सिर पर गड़गड़ाते हल | |
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− | निश्चित ही मैं सुरक्षित बीज हूँ | + | |
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− | सदियों से दबा धरती में | + | |
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− | सुनता आया हूँ सिर पर | + | |
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और लड़ाकू विमानों का गर्जन | और लड़ाकू विमानों का गर्जन | ||
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यह समय है मेरे उगने का | यह समय है मेरे उगने का | ||
− | + | मैं उगूँगा और दुनिया को धरती के क़िस्सों से भर दूँगा | |
− | मैं | + | |
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मैं उनका वंशज हूँ जिन्होनें चराई भेड़ें | मैं उनका वंशज हूँ जिन्होनें चराई भेड़ें | ||
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और लहलहा दिए मैदान | और लहलहा दिए मैदान | ||
− | सम्भव है कि | + | सम्भव है कि हमलावर मेरे कोई लगते हों |
− | + | कोई धागा जुड़ता दिख सकता है आक्रान्ताओं से | |
− | कोई धागा जुड़ता दिख सकता है | + | पर मैं हाथ तक नहीं लगाऊँगा चीज़ों को नष्ट करने के लिए |
− | + | भस्म करने की निगाह से नहीं देखूँगा कुछ भी | |
− | पर मैं हाथ तक नहीं | + | मेरी आँखें माँ जैसी हैं |
− | + | हाथ पिता जैसे । | |
− | भस्म करने की निगाह से | + | </poem> |
− | + | ||
− | मेरी आँखें | + | |
− | + | ||
− | हाथ पिता | + |
18:54, 24 नवम्बर 2018 के समय का अवतरण
मेरी आँखें हैं माँ जैसी
हाथ पिता जैसे
चेहरा-मोहरा मिलता होगा ज़रूर
कुटुम्ब के किसी आदमी से ।
हो सकता है मिलता हो दुनिया के पहले आदमी से
मेरे उठने-बैठने का ढंग
बोलने-बतियाने में हो उन्हीं में से किसी एक का रंग
बहुत सम्भव है मैं होऊँ उनका अंश
जिन्होंने देखे हों दुनिया को सुन्दर बनाने के सपने
क्या पता गुफ़ाओं से पहले-पहल निकलने वाले रहे हों मेरे अपने
या फिर पुरखे रहे हों जगद्गुरू शिल्पी
गढ़ गए हों दुनिया भर के मन्दिरों में मूर्तियाँ
उकेर गए हों भित्ति-चित्र
कौन जाने कोई पुरखा मुझ तक पहुँचा रहा हो ऋचाएँ
और धुन रहा हो सिर ।
निश्चित ही मैं सुरक्षित बीज हूँ सदियों से दबा धरती में
सुनता आया हूँ सिर पर गड़गड़ाते हल
और लड़ाकू विमानों का गर्जन
यह समय है मेरे उगने का
मैं उगूँगा और दुनिया को धरती के क़िस्सों से भर दूँगा
मैं उनका वंशज हूँ जिन्होनें चराई भेड़ें
और लहलहा दिए मैदान
सम्भव है कि हमलावर मेरे कोई लगते हों
कोई धागा जुड़ता दिख सकता है आक्रान्ताओं से
पर मैं हाथ तक नहीं लगाऊँगा चीज़ों को नष्ट करने के लिए
भस्म करने की निगाह से नहीं देखूँगा कुछ भी
मेरी आँखें माँ जैसी हैं
हाथ पिता जैसे ।