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"अंक में सोई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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तेरे दुःख मैं वरूँ।
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फसल कटने के बाद कुछ अन्न बिखर जाता है। उसे सिला कहते हैं। ज़रूरतमंद खेतों में आकर उसे एकत्र कर लेते हैं।
  
 
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17:14, 4 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण


7
छलक उठे
रूप -रस -कलश
नदी -सी बही
सींचे निर्मलमना
अभिशप्त ही रही।
8
शिथिल तन
रुदन- भरा कंठ
हिचकी उठी
बीनती बरौनियाँ
उम्र खेत से सिला*
9
आठों ही याम
कलह -रतजगा
असुर -पाठ
जीवन, मृत्यु-द्वार
भीख माँगते थका।
10
युगों से जगी
थकान- डूबी प्रिया
अंक में सोई
शिशु-सा भोलापन
अलकों में बिखरा।
11
जीवन मिला
साँसों का सौरभ भी
तन में घुला
अधरों से जो पिए
नयनों के चषक।
12
तेरी सिसकी
सन्नाटे को चीरती
बर्छी -सी चुभी
कुछ तो ऐसा करूँ
तेरे दुःख मैं वरूँ।
(20-11-2018)
-0-

*सिला*
फसल कटने के बाद कुछ अन्न बिखर जाता है। उसे सिला कहते हैं। ज़रूरतमंद खेतों में आकर उसे एकत्र कर लेते हैं।