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+ | बीनती बरौनियाँ | ||
+ | उम्र खेत से '''सिला*'''। | ||
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+ | आठों ही याम | ||
+ | कलह -रतजगा | ||
+ | असुर -पाठ | ||
+ | जीवन, मृत्यु-द्वार | ||
+ | भीख माँगते थका। | ||
+ | 10 | ||
+ | युगों से जगी | ||
+ | थकान- डूबी प्रिया | ||
+ | अंक में सोई | ||
+ | शिशु-सा भोलापन | ||
+ | अलकों में बिखरा। | ||
+ | 11 | ||
+ | जीवन मिला | ||
+ | साँसों का सौरभ भी | ||
+ | तन में घुला | ||
+ | अधरों से जो पिए | ||
+ | नयनों के चषक। | ||
+ | 12 | ||
+ | तेरी सिसकी | ||
+ | सन्नाटे को चीरती | ||
+ | बर्छी -सी चुभी | ||
+ | कुछ तो ऐसा करूँ | ||
+ | तेरे दुःख मैं वरूँ। | ||
+ | (20-11-2018) | ||
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+ | '''*सिला*''' | ||
+ | फसल कटने के बाद कुछ अन्न बिखर जाता है। उसे सिला कहते हैं। ज़रूरतमंद खेतों में आकर उसे एकत्र कर लेते हैं। | ||
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17:14, 4 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
7
छलक उठे
रूप -रस -कलश
नदी -सी बही
सींचे निर्मलमना
अभिशप्त ही रही।
8
शिथिल तन
रुदन- भरा कंठ
हिचकी उठी
बीनती बरौनियाँ
उम्र खेत से सिला*।
9
आठों ही याम
कलह -रतजगा
असुर -पाठ
जीवन, मृत्यु-द्वार
भीख माँगते थका।
10
युगों से जगी
थकान- डूबी प्रिया
अंक में सोई
शिशु-सा भोलापन
अलकों में बिखरा।
11
जीवन मिला
साँसों का सौरभ भी
तन में घुला
अधरों से जो पिए
नयनों के चषक।
12
तेरी सिसकी
सन्नाटे को चीरती
बर्छी -सी चुभी
कुछ तो ऐसा करूँ
तेरे दुःख मैं वरूँ।
(20-11-2018)
-0-
*सिला*
फसल कटने के बाद कुछ अन्न बिखर जाता है। उसे सिला कहते हैं। ज़रूरतमंद खेतों में आकर उसे एकत्र कर लेते हैं।