Changes

चरवाहा / सुरेन्द्र स्निग्ध

63 bytes added, 17:24, 25 दिसम्बर 2018
|रचनाकार=सुरेन्द्र स्निग्ध
|अनुवादक=
|संग्रह=रचते गढ़ते / सुरेन्द्र स्निग्ध
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
पिछले चालीस हज़ार वर्षों से
पृथ्वी पुनः हो जाएगी गतिशील
दिक्-दिगंत दिगन्त तक फैल जाएँगी हरियालियाँ
कभी सूखेंगे नहीं आँसू, रुकेगा नहीं दूध
ममता और करुणा की बेली लहराती रहेगी
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,382
edits