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"कितने अटल युगों से सुनती आती हूँ यह बात / रामेश्वरीदेवी मिश्र ‘चकोरी’" के अवतरणों में अंतर
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− | + | कितने अटल युगों से सुनती आती हूँ यह बात। | |
− | + | दूर-दूर है अभी दूर है मेरा स्वर्ण प्रभात॥ | |
− | + | अधिकारों की माँग, दासता का है भीषण पाप। | |
− | + | घात और प्रतिघात पतन के कहलाते अभिशाप॥ | |
+ | अभी नहीं सूखे हैं मेरे उर के तीखे घाव। | ||
+ | जिसकी कसक जगाती रहती है विरोध के भाव॥ | ||
+ | मानवते! कुछ ठहर, न उसका, छिपी हुई वह आग। | ||
+ | आज शहीदों के शव पर गाने दे व्यथित विहाग॥ | ||
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12:12, 26 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
कितने अटल युगों से सुनती आती हूँ यह बात।
दूर-दूर है अभी दूर है मेरा स्वर्ण प्रभात॥
अधिकारों की माँग, दासता का है भीषण पाप।
घात और प्रतिघात पतन के कहलाते अभिशाप॥
अभी नहीं सूखे हैं मेरे उर के तीखे घाव।
जिसकी कसक जगाती रहती है विरोध के भाव॥
मानवते! कुछ ठहर, न उसका, छिपी हुई वह आग।
आज शहीदों के शव पर गाने दे व्यथित विहाग॥