भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रतीक्षा / पुरुषार्थवती देवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषार्थवती देवी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatKavita}} |
+ | |||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
ओह! विदा माँगने आईयह क्षीण हुई उजियाली। | ओह! विदा माँगने आईयह क्षीण हुई उजियाली। |
05:14, 29 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
ओह! विदा माँगने आईयह क्षीण हुई उजियाली।
मैं व्यस्त हो उठी अब तो लखकर पश्चिम की लाली॥
आशा की लहरें ठगकर यह सूना-सा अन्धेरा।
रो उठतीं दूर क्षितिज पर रुकता-सा हुआ बसेरा॥
हम नहीं मानते फिर भी इस नैराश्य को, आखिर।
जा-जाकर फिर आ रुकते उस पार वहीं होकर स्थिर॥
कैसे सुलझाऊँ मन को? निष्प्राण नेत्र हैं चाहें।
उलझाती ही जाती हैं, वह भीगी-भीगी आहें॥
इस पीड़ा में भी क्रीड़ा-कौतुक की अद्भुत खेलें।
अब नहीं सँभाले जाते उद्देश्य-विहीन झमेले॥
कब से बैठी करती हूँ प्राणों से सजल प्रतीक्षा।
ना-लो! बस दे न सकूँगी निर्मम! अब अधिक परीक्षा।