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"जीत को भी मुझे हार कहना पड़ा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | ऐसी मजबूरियाँ भी हैं आयीं कभी | ||
+ | एक अहमक को हुशियार कहना पड़ा | ||
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+ | उसकी ताक़त के आगे मेरी क्या बिसात | ||
+ | एक ज़ालिम को सरकार कहना पड़ा | ||
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00:07, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
जीत को भी मुझे हार कहना पड़ा
एक दुश्मन को दिलदार कहना पड़ा
आँसुओं पर छिड़ी बज़्म में जब बहस
मुझको पानी को अंगार कहना पड़ा
है तो नाजु़क मगर कितना मजबूत है
इसलिए दिल को दमदार कहना पड़ा
साक्ष्य कितने दिये, पर वो माना नहीं
फिर ख़़ुदी को ख़तावार कहना पड़ा
ऐसी मजबूरियाँ भी हैं आयीं कभी
एक अहमक को हुशियार कहना पड़ा
उसकी ताक़त के आगे मेरी क्या बिसात
एक ज़ालिम को सरकार कहना पड़ा