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"ज़िंदगी जितना तुझको पढ़ता हूँ / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | अपनी फ़रियाद कहाँ ले जाऊँ | ||
+ | सामने सिर्फ़ तेरे रखता हूँ | ||
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00:20, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
जिंदगी जितना तुझको पढ़ता हूँ
उतना ही और मैं उलझता हूँ
सारे आलम को यह ख़बर कर दो
इश्क़ की आग में उतरता हूँ
वक़्त पर जो मेरा हथियार बने
वो क़लम साथ लिए चलता हूँ
हक़़ ग़रीबों का छीन लेते जो
उन लुटेरों से रोज़ लड़ता हूँ
जब कोई रास्ता नहीं सूझे
ऐ ख़ुदा तुझको याद करता हूँ
यूँ तो दुनिया में हसीं लाखों हैं
तेरी सूरत पे मगर मरता हूँ
अपनी फ़रियाद कहाँ ले जाऊँ
सामने सिर्फ़ तेरे रखता हूँ