"है ज़माने को ख़बर हम भी हुनरदारों में हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | है ज़माने को ख़बर हम भी हुनरदारों में हैं | ||
+ | क्यों बतायें हम उन्हें हम भी ग़ज़लकारों में हैं | ||
+ | धन नहीं, दौलत नहीं, ताक़त नहीं उतनी मगर | ||
+ | आजमा कर देखिये हम भी मददगारों में हैं | ||
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+ | ये थकी हारी हमारी जिंदगी किस काम की | ||
+ | लोग कवि शायर कहें पर हम भी बंजारों में हैं | ||
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+ | आँख दे दी किन्तु तूने रोशनी दी ही नहीं | ||
+ | हम भी हैं बंदे तेरे हम भी तलबगारों में हैं | ||
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+ | उसने चाहा ही नहीं इतनी सी केवल बात है | ||
+ | दिल लगाता फिर समझता हम भी दिलदारों में हैं | ||
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+ | क़़त्ल कल्लू का हुआ तब, मूकदर्शक हम भी थे | ||
+ | हमको क्यों माफ़ी मिले, हम भी गुनहगारों में हैं | ||
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+ | जगलों में रोशनी करने का जज़्बा दिल में है | ||
+ | हैं भले जुगनू वो लेकिन वो भी खुद्दारों में हैं | ||
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+ | एक मुद्दत से किसी की याद में हम जल रहे | ||
+ | पास मत आना हमारे हम भी अंगारों में हैं | ||
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+ | वो पता ढूँढे हमारा पैन में, आधार में | ||
+ | ऐ खु़दा हम तो ग़ज़ल के चंद अश्आरों में हैं | ||
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00:25, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
है ज़माने को ख़बर हम भी हुनरदारों में हैं
क्यों बतायें हम उन्हें हम भी ग़ज़लकारों में हैं
धन नहीं, दौलत नहीं, ताक़त नहीं उतनी मगर
आजमा कर देखिये हम भी मददगारों में हैं
ये थकी हारी हमारी जिंदगी किस काम की
लोग कवि शायर कहें पर हम भी बंजारों में हैं
आँख दे दी किन्तु तूने रोशनी दी ही नहीं
हम भी हैं बंदे तेरे हम भी तलबगारों में हैं
उसने चाहा ही नहीं इतनी सी केवल बात है
दिल लगाता फिर समझता हम भी दिलदारों में हैं
क़़त्ल कल्लू का हुआ तब, मूकदर्शक हम भी थे
हमको क्यों माफ़ी मिले, हम भी गुनहगारों में हैं
जगलों में रोशनी करने का जज़्बा दिल में है
हैं भले जुगनू वो लेकिन वो भी खुद्दारों में हैं
एक मुद्दत से किसी की याद में हम जल रहे
पास मत आना हमारे हम भी अंगारों में हैं
वो पता ढूँढे हमारा पैन में, आधार में
ऐ खु़दा हम तो ग़ज़ल के चंद अश्आरों में हैं