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"ख़ू़ब जनता को नचाया जा रहा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | क्या ज़माना आ गया है दोस्तो | ||
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+ | डर के मारे लोग क्या-क्या कर रहे | ||
+ | क़ातिलों को घर बुलाया जा रहा | ||
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+ | कल तो दिखलाया गया था सब्ज़बाग़ | ||
+ | और अब मक़तल में लाया जा रहा | ||
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15:25, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
ख़ू़ब जनता को नचाया जा रहा
कमल रेतों में खिलाया जा रहा
वो चुनावों में यही हर बार कहता
राम का मंदिर बनाया जा रहा
छेड़कर इतिहास के पन्नों को फिर
हमको आपस में लड़ाया जा रहा
अब कोई कैसे यक़ीं आखि़र करे
झूठ को भी सच बताया जा रहा
साँस लेने पर भी जीएसटी लगे
वो मसैादा भी बनाया जा रहा
आदमी को ही जो कर दें बेदख़ल
उन मशीनों को लगाया जा रहा
क्या ज़माना आ गया है दोस्तो
सूर्य को दर्पण दिखाया जा रहा
डर के मारे लोग क्या-क्या कर रहे
क़ातिलों को घर बुलाया जा रहा
कल तो दिखलाया गया था सब्ज़बाग़
और अब मक़तल में लाया जा रहा