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"किससे कहूँ कि खेतों से हरियाली ग़ायब है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | वो इन्साफ़ माँगने वाला स्वर क्यों मौन हुआ | ||
+ | क़त्ल हो गया होगा तभी सवाली ग़ायब है | ||
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15:26, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
किससे कहूँ कि खेतों से हरियाली ग़ायब है
मेरे बच्चों के आगे से थाली ग़ायब है
निकली थी वो काम ढूँढने लौटी नहीं मगर
कब से खोज रहा हूँ मैं घरवाली ग़ायब है
कैसे मानूँ राम अयोध्या आज ही लौटे थे
चारों तरफ़ अँधेरा है दीवाली ग़ायब है
हम तो भूख-प्यास पर ताले मार के बैठे हैं
सुबह हुई है मगर चाय की प्याली ग़ायब है
उधर लुटेरे देश लूटकर देश से भाग रहे
चौकीदार सो रहा है रखवाली ग़ायब है
वो इन्साफ़ माँगने वाला स्वर क्यों मौन हुआ
क़त्ल हो गया होगा तभी सवाली ग़ायब है