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"बहुत-सा काम बंदों का स्वयं भगवान करता है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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बड़े लोगों की बातें भी बड़ी होतीं, वो तुम जानो
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सरल बातें तो बस कोई सरल इन्सान करता है
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उसी को मानते अपना, उसी की क़द्र करते हैं
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हमारी मुश्किलें जो आदमी आसान करता है
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मेरे इस प्रश्न का उत्तर अभी तक मिल नहीं पाया
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अधूरे ज्ञान पर विज्ञान क्यों अभिमान करता है
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उसी के सामने केवल हम अपना सर झुकाते हैं
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ग़रीबों और मज़लूमों का जो सम्मान करता है
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नयी सरकार आये पर करे वह काम भी अच्छा
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यही तो सोचकर इक नागरिक मतदान करता है
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हजा़रों बार परखा है तभी दावे से कहता हूँ
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मुसीबत में मेरी रक्षा मेरा ईमान करता है
 
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20:35, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

बहुत-सा काम बंदों का स्वयं भगवान करता है
मगर तारीफ़ अपने मॅुह से हर नादान करता है

बड़े लोगों की बातें भी बड़ी होतीं, वो तुम जानो
सरल बातें तो बस कोई सरल इन्सान करता है

उसी को मानते अपना, उसी की क़द्र करते हैं
हमारी मुश्किलें जो आदमी आसान करता है

मेरे इस प्रश्न का उत्तर अभी तक मिल नहीं पाया
अधूरे ज्ञान पर विज्ञान क्यों अभिमान करता है

उसी के सामने केवल हम अपना सर झुकाते हैं
ग़रीबों और मज़लूमों का जो सम्मान करता है

नयी सरकार आये पर करे वह काम भी अच्छा
यही तो सोचकर इक नागरिक मतदान करता है

हजा़रों बार परखा है तभी दावे से कहता हूँ
मुसीबत में मेरी रक्षा मेरा ईमान करता है