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"ख़ुदा गर चाहता है हर बशर दौड़ा चला आये / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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ख़ुदा गर चाहता है हर बशर दौड़ा चला आये
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तेा मेरी भी यही ज़िद है कि मेरे घर ख़ुदा आये
  
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किसी से प्यार इकतरफ़ा हमें करना नहीं आता
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बराबर प्यार हो दोनों तरफ़ तब तो मज़ा आये
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उन्हें भी प्यार हम से है यक़ीं तब तो करें यारो
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हमारे पास उनके हाथ का जब ख़त लिखा आये
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बताओ दूसरा भी रोग कैसे पाल ले कोई
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लगा पहले से है जो रोग उसकी तो दवा आये
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करोड़ों लोग यूँ तो रोज़ साँसें गिन रहे अपनी
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मगर ज़िंदा हूँ वही है जिसको जीने की कला आये
 
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20:36, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

ख़ुदा गर चाहता है हर बशर दौड़ा चला आये
तेा मेरी भी यही ज़िद है कि मेरे घर ख़ुदा आये

किसी से प्यार इकतरफ़ा हमें करना नहीं आता
बराबर प्यार हो दोनों तरफ़ तब तो मज़ा आये

उन्हें भी प्यार हम से है यक़ीं तब तो करें यारो
हमारे पास उनके हाथ का जब ख़त लिखा आये

बताओ दूसरा भी रोग कैसे पाल ले कोई
लगा पहले से है जो रोग उसकी तो दवा आये

करोड़ों लोग यूँ तो रोज़ साँसें गिन रहे अपनी
मगर ज़िंदा हूँ वही है जिसको जीने की कला आये