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"सबके समक्ष हाथ पसारा नहीं जाता / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | पर, क्या करूँ अन्याय भी देखा नहीं जाता | ||
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+ | होता है पाप पुन्य का इक रोज़ सब हिसाब | ||
+ | इजलास पे उसके केाई बख़्शा नहीं जाता | ||
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20:41, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
सबके समक्ष हाथ पसारा नहीं जाता
जो दर्द व्यक्तिगत हो वो बॉटा नहीं जाता
आता है सुअवसर कहाँ जीवन में बार-बार
अच्छा हो मुहूरत तो वो टाला नहीं जाता
ऐसा समय आयेगा ये मालूम कहाँ था
अब वक़्त तुम्हारे बिना काटा नहीं जाता
मुझ से ख़फ़ा यहाँ की हैं सारी हुक़ूमतें
पर, क्या करूँ अन्याय भी देखा नहीं जाता
होता है पाप पुन्य का इक रोज़ सब हिसाब
इजलास पे उसके केाई बख़्शा नहीं जाता