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"ताक़त में वो भारी है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | जाती नहीं ग़रीबी क्यों | ||
+ | यह कैसी बीमारी है | ||
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+ | लेखन भी अब तो धंधा | ||
+ | लेखक भी व्यापारी है | ||
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+ | जिस पर राजा खुश होता | ||
+ | वह कविता दरबारी है | ||
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+ | बात उसूलों की वरना | ||
+ | दुश्मन से भी यारी हैं | ||
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20:55, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
ताक़त में वो भारी है
जंग हमारी जारी है
जनहित की रक्षा करना
कवि की जिम्मेदारी है
जिस के भीतर मानवता
कवि उसका आभारी है
जाती नहीं ग़रीबी क्यों
यह कैसी बीमारी है
लेखन भी अब तो धंधा
लेखक भी व्यापारी है
जिस पर राजा खुश होता
वह कविता दरबारी है
बात उसूलों की वरना
दुश्मन से भी यारी हैं