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"मेरी फ़रियाद भी सुनने मगर आता नहीं कोई / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | दुकानों पर भले ही चाय की करते हैं ये बहसें | ||
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+ | बड़ी चिंता उन्हें बैठे हैं जो वातानुकूलित में | ||
+ | मेरे एहसास में जलने मगर आता नहीं कोई | ||
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21:01, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
मेरी फ़रियाद भी सुनने मगर आता नहीं कोई
ग़रीबों की मदद करने मगर आता नहीं कोई
दबंगों ने हमें मारा, हमारा घर जला डाला
हमारे वास्ते लड़ने मगर आता नहीं कोई
ग़रीबी दूर करने के लिए व्याख्यान होते हैं
ग़रीबों की व्यथा सुनने मगर आता नहीं कोई
गढें किस्से, कहानी ख़ूब वो हालात पर मेरे
मेरी अर्ज़ी तलक लिखने मगर आता नहीं कोई
दुकानों पर भले ही चाय की करते हैं ये बहसें
किसी इजलास पर कहने मगर आता नहीं कोई
बड़ी चिंता उन्हें बैठे हैं जो वातानुकूलित में
मेरे एहसास में जलने मगर आता नहीं कोई