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"बन के मीठी सुवास रहती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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जब हाल-ए-दिल हम लिखते हैं।
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बन के मीठी सुवास रहती है।
वो हाल-ए-मौसम लिखते हैं।
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वो मेरे आसपास रहती है।
  
अब सारे चारागर मुझको,
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उसके होंठों में झील है मीठी,
रोज़ दवा में रम लिखते हैं।
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मेरे होंठों में प्यास रहती है।
  
उनके गालों पर मेरे लब,
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आँख में प्यार की दवा डाली,
शोलों पर शबनम लिखते हैं।
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अब ज़बाँ पर मिठास रहती है।
  
रिस रिस कर दिल से निकलेंगी,
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मेरी यादों के मैकदे में वो,
सोच, उन्हें हरदम लिखते हैं।
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खो के होश-ओ-हवास रहती है।
  
हँसने लगती हैं दीवारें,
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मेरे दिल में न झाँकिये साहिब,
बच्चे जब ऊधम लिखते हैं।
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वो यहाँ बेलिबास रहती है।
 
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दुनिया के घायल माथे पर,
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माँ के लब मरहम लिखते हैं।
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15:44, 3 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

बन के मीठी सुवास रहती है।
वो मेरे आसपास रहती है।

उसके होंठों में झील है मीठी,
मेरे होंठों में प्यास रहती है।

आँख में प्यार की दवा डाली,
अब ज़बाँ पर मिठास रहती है।

मेरी यादों के मैकदे में वो,
खो के होश-ओ-हवास रहती है।

मेरे दिल में न झाँकिये साहिब,
वो यहाँ बेलिबास रहती है।