"प्यार में / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
हम क्यों लड़ते हैं इतना | हम क्यों लड़ते हैं इतना | ||
− | बच्चों सा | + | बच्चों-सा |
जबकि बचपना | जबकि बचपना | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
छेड़ती हूँ उसे | छेड़ती हूँ उसे | ||
− | कि जाए | + | कि जाए बतियाए अपनी लालपरी से |
और झल्लाता-सा | और झल्लाता-सा | ||
− | चीख़ता है वह- कपार... | + | चीख़ता है वह-- कपार... |
फिर पूछती हूँ मैं | फिर पूछती हूँ मैं | ||
पंक्ति 34: | पंक्ति 34: | ||
− | फिर बोलता है वह- | + | फिर बोलता है वह-- |
और तुम्हारे जो इतने चंपू हैं और | और तुम्हारे जो इतने चंपू हैं और | ||
पंक्ति 88: | पंक्ति 88: | ||
− | तो तो उसी के पास क्यों नहीं चले जाते | + | तो... तो उसी के पास क्यों नहीं चले जाते |
अरे! | अरे! | ||
पंक्ति 107: | पंक्ति 107: | ||
और मेरा सिर सूंघता | और मेरा सिर सूंघता | ||
− | कहता है- ऐसी ही तो ख़ुशबू थी उसके बालों की भी | + | कहता है-- ऐसी ही तो ख़ुशबू थी उसके बालों की भी |
... हा हा हा... | ... हा हा हा... |
22:54, 30 जुलाई 2008 का अवतरण
प्यार में
हम क्यों लड़ते हैं इतना
बच्चों-सा
जबकि बचपना
छोड आए कितना पीछे
अक्सर मैं
छेड़ती हूँ उसे
कि जाए बतियाए अपनी लालपरी से
और झल्लाता-सा
चीख़ता है वह-- कपार...
फिर पूछती हूँ मैं
यह कपार क्या हुआ, जानेमन
तो हँसता है वह-
कुछ नहीं... मेरा सर...
फिर बोलता है वह--
और तुम्हारे जो इतने चंपू हैं और
तुम्हारा वह दंतचिपोर...
ओह शिट... यह चिपोर क्या हुआ...
नहीं, मेरा मतलब
हँसमुख था
जो मुँह लटकाए पड़ा रहता है
दर पर तेरे...
हा हा हा
छोड़िए बेचारे को
कितना सीधा है वह
आपकी तरह तंग तो नहीं करता
बात-बेबात
और आपकी वह सहेली
कैसी है
पूछता है वह... कौन
अरे वही जो हमेशा अपना झखुरा
फैलाए रहती है
व्हाट झखुरा... झल्लाता है वह
अरे वही
बाले तेरे बालजाल में कैसे उलझा दूँ लोचन... वाला
मतलब जुल्फों वाली आपकी सुनयना
अरे
अच्छी तो है वह कितनी
उसी दिन बेले की कलियाँ सजा रखी थीं
तो... तो उसी के पास क्यों नहीं चले जाते
अरे!
वहीं से तो चला आ रहा हूँ... हा हा हा
देखो मेरी आँखों में उसकी ख़ुशबू
दिख नहीं रही...
झपटती हूँ मैं
और वार बचाता वह
संभाल लेता है मुझे
और मेरा सिर सूंघता
कहता है-- ऐसी ही तो ख़ुशबू थी उसके बालों की भी
... हा हा हा...