भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पैन की स्याही से निकली / कपिल भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कपिल भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:42, 19 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

पैन की स्याही से निकली,
चटक आवाज से ही,
झक सफेद पड़ने लगते हैं जिनके चेहरे,
और अंधेरे के सन्नाटे को चीरती,
पेन चलने की चर्र-चर्र की आवाज से निकलती रोशनी,
जिनकी आंखों में पनीली किरचों की तरह,
लगती है गड़ने,
तो हैरान परेशान वो लोग,
तान देते हैं पिस्तौल कलम के माथे पर ।

पर कलम चूंकि शाश्वत है, सत्य है,
हमेशा से पड़ा है जहर और गोलियों से वास्ता ।

बर्फ सी ठंडी हथेलियों के बीच,
करीने से सजाकर रखी गयी हजारों पिस्तौल,
न तो चटकती स्याही को ही खत्म कर सकती हैं,
और न ही चर्र-चर्र की आवाज से निकलती रोशनी को ।