भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज नीरवता चारों ओर फैली है / कपिल भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कपिल भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:56, 19 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

आज नीरवता चारों ओर फैली है,
जनवरी की उस धुंध की तरह,
जो गहराती रात में,
और ज्यादा गहरी होती जाती है !

उलझी हुई भाषा की बिखरी किरचों को,
समटने का यह आखिरी प्रयास होगा,
सहज होना ही मुझे बैचेन करता है,
अपनी जद में ले लेता है पीलिया,
मेरी जीर्ण-शीर्ण देह को
यदि तीन रातें निकल जाएं बिना बैचेन हुए !

कभी-कभी लगता है कि बैचेनी,
वो बिछुड़ी हुई प्रेमिका है,
जो सारी रात पान के पत्तों को चबाती रहती थी,
और सुबह पीक छिड़क देती थी,
मेरे जरखेज होठों पर !

क्या मालूम यह बैचेनी है,
या पान की वो पीक,
जिसकी बिछुड़न न शरीर सह पाता है,
और न ही मन !