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"अरूणाकाश / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर
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जब भारी हो जाता है दुख<br> | जब भारी हो जाता है दुख<br> | ||
− | तब | + | तब ऊपर उठती आह<br> |
− | समेट लेता है<br> | + | समेट लेता है जिसे<br> |
अरूणाकाश। | अरूणाकाश। |
23:21, 30 जुलाई 2008 का अवतरण
जीवन के तमाम रंग
खिलते हैं अरूणाकाश
में
तितलियाँ उड़ती हैं
पक्षी अपनी चहचहाटों
से
गुँजाते हैं अरूणाकाश
तड़कर गिरने से पहले
बिजलियां कौंधती हैं
अरूणाकाश में
वहाँ संचित रहते हैं
सारे राग-विराग
दुखी आदमी ताकता है ऊपर
अरूणाकाश
ठहाके उसे ही गुँजाते
हैं
आँसुओं के साथ मिट्टी
में गिरता
जब भारी हो जाता है दुख
तब ऊपर उठती आह
समेट लेता है जिसे
अरूणाकाश।