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"भौंक रहे कुत्ते / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | करते हरे भरे पेड़ों से | ||
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+ | हाँफ-हाँफ नफ़रत की भट्ठी | ||
+ | धौंक रहे कुत्ते | ||
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23:47, 20 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
हर आने जाने वाले पर
भौंक रहे कुत्ते
निर्बल को दौड़ा लेने में
मज़ा मिले जब
तो
क्यों ये भौंक रहे हैं
इससे क्या मतलब इनको
हल्की से हल्की आहट पर
चौंक रहे कुत्ते
हर गाड़ी का पीछा करते
सदा बिना मतलब
कई मिसालें बनीं
न जाने ये सुधरेंगे कब
राजनीति गौ की चरबी से
छौंक रहे कुत्ते
गर्मी इनसे सहन न होती
फिर भी ये हरदम
करते हरे भरे पेड़ों से
बातें बहुत गरम
हाँफ-हाँफ नफ़रत की भट्ठी
धौंक रहे कुत्ते