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"पूँजी के काले खातों में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | भाँति भाँति के खेल दिखाकर | ||
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+ | नींद न टूटे पूँजीपति की | ||
+ | सोच यही हम डरते रहते | ||
+ | बहरी पूँजी के कानों में | ||
+ | भिन-भिन-भिन-भिन करते रहते | ||
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+ | ख़ुशबू पर मर मिटने वाले | ||
+ | नाली के मच्छर हैं | ||
+ | हम सब | ||
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23:51, 20 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
पूँजी के काले खातों में
महज़ आँकड़े भर हैं
हम सब
पूँजी हमें बदल सकती है
कम या ज़्यादा कर सकती है
शून्य गुणा कर अपने हल में
हमें मिटा सकती है पल में
इसका बुरा क़र्ज़ भरने को
बढ़ते जाते कर हैं
हम सब
भाँति भाँति के खेल दिखाकर
पूँजी का दिल बहलाते हैं
गाली, पत्थर, डंडा, गोली,
जाने क्या-क्या सह जाते हैं
चेहरे पर मुस्कान सजाये
सर्कस के जोकर हैं
हम सब
नींद न टूटे पूँजीपति की
सोच यही हम डरते रहते
बहरी पूँजी के कानों में
भिन-भिन-भिन-भिन करते रहते
ख़ुशबू पर मर मिटने वाले
नाली के मच्छर हैं
हम सब