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"समय की कुल्हाड़ी / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | यही चक्र दुनिया का | ||
+ | परमचक्र शायद | ||
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+ | पुलक-पुलक उठता | ||
+ | जिसकी छाया में मन | ||
+ | देह वही | ||
+ | नहीं रही | ||
+ | आज यहाँ पावन | ||
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+ | मुझे लगा अखिल विश्व | ||
+ | अर्थहीन बेहद | ||
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23:56, 20 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
समय की कुल्हाड़ी ने
काट दिया बरगद
पाकर
अब जीवन का आसमान सूना
सूरज का ताप हुआ
पहले से दूना
आँगन को हुआ भरम
आज बढ़ा है क़द
बड़ा हुआ
ये बचपन
जिसकी डालों पर
लदा हुआ
कंधों पे
आज वही कट कर
यही चक्र दुनिया का
परमचक्र शायद
पुलक-पुलक उठता
जिसकी छाया में मन
देह वही
नहीं रही
आज यहाँ पावन
मुझे लगा अखिल विश्व
अर्थहीन बेहद