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"उत्सव का मौसम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | पल में राम सरीखा लगता | ||
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+ | तन के रावण, कंस, पूतना | ||
+ | निकला सबका दम | ||
+ | मन मंदिर में गूँज रही अब | ||
+ | राधा की छम-छम | ||
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+ | दीपमालिका | ||
+ | उसकी हँसी अमावस में लगती है | ||
+ | थके हुए जीवन को | ||
+ | नित नव संजीवन देती है | ||
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+ | हर दिन मेरा हुआ दशहरा | ||
+ | खत्म हो गए ग़म | ||
+ | सब रातें हो गईं दिवाली | ||
+ | भागे सारे तम | ||
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+ | अखिल सृष्टि में | ||
+ | बालक-छवि से ज्यादा सुंदर क्या है | ||
+ | बच्चों में बसने को शायद | ||
+ | प्रभु ने विश्व रचा है | ||
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+ | करते इस मोहन छवि पर | ||
+ | सर्वस्व निछावर हम | ||
+ | नयनों में हो यह छवि तेरी | ||
+ | निकले जब भी दम | ||
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10:09, 21 जनवरी 2019 का अवतरण
चंचल मृग सा
घर आँगन में
दौड़ रहा हरदम
उत्सव का मौसम
घनुष हाथ में लेकर
पल में राम सरीखा लगता
अगले ही पल
लिए बाँसुरी बालकृष्ण सा दिखता
तन के रावण, कंस, पूतना
निकला सबका दम
मन मंदिर में गूँज रही अब
राधा की छम-छम
दीपमालिका
उसकी हँसी अमावस में लगती है
थके हुए जीवन को
नित नव संजीवन देती है
हर दिन मेरा हुआ दशहरा
खत्म हो गए ग़म
सब रातें हो गईं दिवाली
भागे सारे तम
अखिल सृष्टि में
बालक-छवि से ज्यादा सुंदर क्या है
बच्चों में बसने को शायद
प्रभु ने विश्व रचा है
करते इस मोहन छवि पर
सर्वस्व निछावर हम
नयनों में हो यह छवि तेरी
निकले जब भी दम