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"भीड़ भरे इस चौराहे पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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छोड़ गया पर भूल न पाया
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मैं इससे फिर टकराया
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आई होती तभी समझ में
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आज न घटती ये दुर्घटना
 
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10:11, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

भीड़ भरे इस चौराहे पर
आज अचानक उसका मिलना
जैसे इंटरनेट पर यूँ ही
मिले पाठ्य पुस्तक की रचना

यूँ तो मेरे प्रश्नपत्र में
यह रचना भी आई थी
पर
इसके हल से कभी न मिलते
मुझको वे मनचाहे नंबर

सुंदर, सरल, कमाऊ भी था
तुलसी बाबा को हल करना

रचना थी ये मुक्तिबोध की
छोड़ गया पर भूल न पाया
आखिर इस चौराहे पर आकर
मैं इससे फिर टकराया

आई होती तभी समझ में
आज न घटती ये दुर्घटना