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"बैकुंठवासी श्याम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | उतर आओ फिर धरा पर | ||
+ | छोड़ कर आराम | ||
+ | बैकुंठवासी श्याम | ||
+ | अब सुदामा | ||
+ | द्वार से दुत्कार खाकर लौट जाते | ||
+ | झूठ के दम पर युधिष्ठिर | ||
+ | अब यहाँ हैं राज्य पाते | ||
+ | गर्भ में ही मार देते | ||
+ | कंस नन्हीं देवियों को | ||
+ | और अर्जुन से सखा अब | ||
+ | कहाँ मिलते हैं किसी को | ||
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+ | प्रेम का बहुरूप धरकर | ||
+ | आ गया है काम | ||
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+ | देवता डरने लगे हैं | ||
+ | देख मानव भक्ति भगवन | ||
+ | कर्म कोई और करता | ||
+ | फल भुगतता दूसरा जन | ||
+ | योग | ||
+ | योगा में बदल | ||
+ | बाजार में बिकने लगा है | ||
+ | ज्ञान सारा | ||
+ | देह के सुख को बढ़ाने में लगा है | ||
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+ | नये युग को | ||
+ | नई गीता | ||
+ | चाहिए घनश्याम | ||
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+ | कौरवों और पांडवों के | ||
+ | स्वार्थरत गठबन्धनों से | ||
+ | हस्तिनापुर कसमसाता | ||
+ | और भारत त्रस्त फिर से | ||
+ | द्रौपदी का चीर | ||
+ | खींचा जा रहा है हर गली में | ||
+ | रूप लाखों धर प्रभो | ||
+ | आना पड़ेगा इस सदी में | ||
+ | |||
+ | बोझ कलियुग का तभी तो | ||
+ | पायगा सच थाम | ||
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20:23, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
उतर आओ फिर धरा पर
छोड़ कर आराम
बैकुंठवासी श्याम
अब सुदामा
द्वार से दुत्कार खाकर लौट जाते
झूठ के दम पर युधिष्ठिर
अब यहाँ हैं राज्य पाते
गर्भ में ही मार देते
कंस नन्हीं देवियों को
और अर्जुन से सखा अब
कहाँ मिलते हैं किसी को
प्रेम का बहुरूप धरकर
आ गया है काम
देवता डरने लगे हैं
देख मानव भक्ति भगवन
कर्म कोई और करता
फल भुगतता दूसरा जन
योग
योगा में बदल
बाजार में बिकने लगा है
ज्ञान सारा
देह के सुख को बढ़ाने में लगा है
नये युग को
नई गीता
चाहिए घनश्याम
कौरवों और पांडवों के
स्वार्थरत गठबन्धनों से
हस्तिनापुर कसमसाता
और भारत त्रस्त फिर से
द्रौपदी का चीर
खींचा जा रहा है हर गली में
रूप लाखों धर प्रभो
आना पड़ेगा इस सदी में
बोझ कलियुग का तभी तो
पायगा सच थाम