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"फिर आया घर-घर में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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फिर आया
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घर घर में
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उत्सव का मौसम
  
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जुम्मन की जेबों से त्योहारी बोली
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मिलती हो गुइयाँ बस दीवाली होली
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सुनता है
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सारा घर
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सिक्कों की खनखन
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बरसा है
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कपड़ों का सावन
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सहरा पे
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लहराया
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रंगों का परचम
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हलवाई ने प्रतिमा शक्कर से गढ़ दी
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भूखी गैलरियों में जमकर है बिकती
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बसुला, छेनी
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सारा दिन करते खट-खट
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चावल के दाने भी
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करते हैं पट-पट
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आँवें के मुख पर है
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लाली का आलम
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मैली ना हो जाएँ
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बैठीं थीं छुपकर
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बक्सों से खुशियाँ सब फिर आईं बाहर
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हर घर में रौनक है
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गलियों में हलचल
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फूलों से लगते
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जो पत्थर से थे कल
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अद्भुत है
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कमियों का
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ख़ुशियों से संगम
 
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20:48, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

फिर आया
घर घर में
उत्सव का मौसम

जुम्मन की जेबों से त्योहारी बोली
मिलती हो गुइयाँ बस दीवाली होली
सुनता है
सारा घर
सिक्कों की खनखन
बरसा है
आँगन में
कपड़ों का सावन

सहरा पे
लहराया
रंगों का परचम

हलवाई ने प्रतिमा शक्कर से गढ़ दी
भूखी गैलरियों में जमकर है बिकती
बसुला, छेनी
सारा दिन करते खट-खट
चावल के दाने भी
करते हैं पट-पट

आँवें के मुख पर है
लाली का आलम

मैली ना हो जाएँ
बैठीं थीं छुपकर
बक्सों से खुशियाँ सब फिर आईं बाहर
हर घर में रौनक है
गलियों में हलचल
फूलों से लगते
जो पत्थर से थे कल

अद्भुत है
कमियों का
ख़ुशियों से संगम