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"रंग से भरे सुगंध से तरे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | दिन ले के आए ऋतुराज हैं | ||
+ | सरसों ने पहनाया फूलों का पीतवस्त्र | ||
+ | परिमल ने दान किये सब अचूक अस्त्र-शस्त्र | ||
+ | पी मादक जाम | ||
+ | बौराये आम | ||
+ | झूम रहे बन उनका ताज हैं | ||
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+ | महुवे ने राहों में फूल हैं बिछा दिये | ||
+ | आँवलों ने धीरे से शीश हैं झुका लिये | ||
+ | मदन सारथी | ||
+ | चले महारथी | ||
+ | विजित सभी जन-गण-मन आज हैं | ||
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+ | खेतों की रंगोली छू वसंत पैर तरी | ||
+ | फागुन ने पाहुन के पाँव महावर भरी | ||
+ | बोली होली | ||
+ | लाओ रोली | ||
+ | करुँ तिलक आये सरताज हैं | ||
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+ | कुहरे के चंगुल से धरती को मुक्त किया | ||
+ | जाड़े को मूर्च्छित कर पुनः उसे सुप्त किया | ||
+ | धरती, अम्बर | ||
+ | ग्राम, वन, नगर | ||
+ | बजते कण-कण में जय साज़ हैं | ||
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21:01, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
रंग से भरे
सुगंध से तरे
दिन ले के आए ऋतुराज हैं
सरसों ने पहनाया फूलों का पीतवस्त्र
परिमल ने दान किये सब अचूक अस्त्र-शस्त्र
पी मादक जाम
बौराये आम
झूम रहे बन उनका ताज हैं
महुवे ने राहों में फूल हैं बिछा दिये
आँवलों ने धीरे से शीश हैं झुका लिये
मदन सारथी
चले महारथी
विजित सभी जन-गण-मन आज हैं
खेतों की रंगोली छू वसंत पैर तरी
फागुन ने पाहुन के पाँव महावर भरी
बोली होली
लाओ रोली
करुँ तिलक आये सरताज हैं
कुहरे के चंगुल से धरती को मुक्त किया
जाड़े को मूर्च्छित कर पुनः उसे सुप्त किया
धरती, अम्बर
ग्राम, वन, नगर
बजते कण-कण में जय साज़ हैं