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− | नहीं उल्लास नहीं यह ब्रह्माण्ड, जो हो रहा प्रसार
| + | हमेशा संशय रहता है |
− | चीखे़ हैं, है दुःख ही अनिवार अपरम्पार
| + | ठीक ही हूँ न |
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− | है, अवश्य है कोई ईश्वर कण कण में व्याप्त
| + | कितने लोगों को आज सूर्याेदय से अगले साल इसी दिन सूर्योदय तक |
− | सखा नहीं, शत्रु है वह, जानो जो करो शिनाख़्त
| + | अपनी पहचान बदलनी है? फूल कुतरने की मशीनों की रफ़्तार बढ़ती |
| + | जा रही है। हम मिथक जीते हैं और तय करते हैं कि आज कौन बलि |
| + | चढ़ रहा है। एक दिन राजकुमार आएगा और राक्षस को मार डालेगा। |
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− | युधिष्ठिर, क्यों निर्वाक्, ओ नीतिविशारद,
| + | राक्षसों ने लाटरियाँ बन्द कर दी हैं। |
− | पीड़ाओं से देख भरा यह संसार लबालब
| + | किसी ने दोलन चक्रों पर काम किया है |
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− | हजारों साल बाद कभी पूछूँगा
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− | 9002 में क्या हुआ था?
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− | आदमी को सपनों के बाज़ार में ले जाता है जादूगर
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− | आदमी को आज़ादी के सपने बेचता है जादूगर
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− | आदमी की चिन्ता में बार बार कई कई बार लगातार रोता हुआ दिखता है जादूगर
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− | आदमी को आदमी की परम्पराओं में ले जाता है जादूगर
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− | आदमी को आदमी आदमी कहता
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− | आदम को आदमी कहकर चिल्लाता है जादूगर
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− | आदमी जानता है कि सपनों की खरीदारी आज दो और चार का कारोबार है
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− | आदमी जानता है कि राष्ट्रीय झण्डा जिस पर लपेटा गया है वह एक जादूगर की
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− | लाश है
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− | आदमी जानता है कि दुःखों से भरा ब्रह्माण्ड है, दुःखों का समन्दर है,दुःखों का
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− | पहाड़ है
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− | आदमी जानता है कि सब कुछ गड्डमड्ड है, ख़याल गड्डमड्ड हैं, दुःख गड्डमड्ड हैं
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− | आदमी जानता है कि सत्य असत्य है, विश्वास अविश्वास है, युक्ति युक्तिहीन है
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− | आदमी जानता है कि जीवन सूचनाओं के ब्रह्मराक्षस की लीद है
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− | एकमात्र
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− | सत्य
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− | जो सत्य
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− | है
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− | वह
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− | है
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− | भूख
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− | दूर सफेद दीवारों पर चमकती धूप है
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− | हवा के कण परस्पर दूर होते जा रहे
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− | प्रकाश के साथ ताप का एहसास तरंगित हो रहा
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− | ज़मीं से आस्माँ तक धधक रही है फिजाँ
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− | एकमात्र सत्य
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− | वह है भूख है जो सत्य
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− | ज़र जोरू ज़मीन भर नहीं
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− | यह भूख निगलती है खु़द को ही
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− | क्रमशः और और विकराल बनती
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− | कौन कह सकता है कि है उपजी
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− | किस भूख से कौन सी कला
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− | शृंखला कौन सी कौन सी विशृंखला
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− | कैसा धर्म कैसा मर्म
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− | यह ग़रीब की भूख नहीं जो चाहती अन्न गर्म
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− | यह सत्य उस दुनिया का है
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− | जहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं
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− | फिर भी जैसे कुछ भी है नहीं
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− | इस तरह दौड़े आते हैं लोलुप
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− | आँखें अंतड़ियाँ शिश्न योनियाँ
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− | सब कुछ चबा जाने पर भी जो नहीं मिटती
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− | यह सत्य उस भूख का है
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− | यह धरती रहने लायक नहीं है
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− | यह धरती रहने लायक नहीं है
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− | आ हा हा मैं कहाँ खो गया
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− | इतनी बारिश होती रही
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− | बूँदें टिप टिप बदन पर आ आ गिरतीं
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− | और मैं कहाँ खोया रहा
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− | कितनी बातें बूँदों से करनी थीं
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− | यहाँ वहाँ हर जगह जो फल रहीं उलटबाँसियाँ
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− | उनसे एक-एक कर सुननी थीं
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− | मैं जाने कहाँ खो गया
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− | हवाओं में जो चीख़ सुनते हो, वह बहार की गूँज है
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− | बहार आयी है दुःस्वप्नों का बोझ लिए
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− | बहार आयी है ख़बरें लिए कि बहुत सारे लोग हमेशा के लिए धरती से उड़ चुके हैं
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− | अन्तरिक्ष से किस जानिब वे आये थे किस जानिब वे चले गए कौन जानता है
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− | वे मर्द थे या औरत किसको ख़बर है
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− | ढूँढ़ती कि शून्य में किस दरवाजे़ से वह अन्दर आए बहार आई है
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− | अश्कों का बोझ लिए बहार आयी है
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− | शायर के लफ्ज़ लिए कि नई रस्म है वतन में कि सर झुका के चलो बहार आई है
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− | यहाँ कोई नहीं रहेगा सिफ़ वर्दियों के सिवा आर-पार
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− | आदमी को तारों के पार रहना है और मुल्क है कि बँधा है तार-तार
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− | मौत के सौदागरों को मिलते हैं तमगे
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− | कि बहार आएगी तो वे सीना तान कर चलेंगे
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− | बहार आई है दोस्तों, वादियों पर बिछ रही है, हत्यारों के तमगों को छू रही है और
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− | चीख़ रही है
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− | सुनो कितने तमगे हैं कितनी मौतें बहार पूछ रही है
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− | कि कितनी मौतें और होंगी कि तमगों से भर जाएँगे वर्दियों के चप्पे चप्पे बहार पूछ
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− | रही है
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− | सुनो बहार की बद दुआ सुनो कि वर्दियाँ मिट जाएँगी धूल और खू़न की बदबू में
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− | सड़ जाएँगी
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− | रहेगा आदमी फिर फिर मरने को तैयार कि बहार का शृंगार करे कि त्योहार हो हो
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− | नाच गान
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− | हो आज़ादी।
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− | एह शहेला
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− | दुनिया जो पहले से बेहतर है आज
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− | वह शहेला के होने से है
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− | उसके जाने के बाद उतनी बेहतर दुनिया रह गई है
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− | और और शहेलाएँ खिलखिलाती उड़ रही हैं नाच रही हैं
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− | किसको किसको ख़त्म करेगा जादूगर पूछ आओ युधिष्ठिर
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− | मरेंगी और शहेलाएँ चीखे़ होंगी और प्रसारित
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− | यह हमारी सृष्टि की गतिकी है युधिष्ठिर
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− | मरना तो है ही सबको
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− | सजना है कंकालों से काइनात को
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− | भस्म के अथाह जंजालों से
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− | फिर भी आँसू हैं बहते
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− | ऐसे ही आततायियों की गोलियों से भूनी जाओगी बार बार ओ शहेला
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− | कल इशरत कल सोनी पूरी आज शहेला
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− | अनगिनत नाम बन कर आओगी
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− | इतिहास की भैरवी तान ढूँढ़ते
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− | तुमसे टकराते रहेंगे हम
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− | बहार आयी है ख़बरें लिए कि बहुत सारे लोग हमेशा के लिए धरती से उड़ चुके हैं
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− | अन्तरिक्ष से किस जानिब वे आये थे किस जानिब वे चले गए कौन जानता है
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− | वे मर्द थे या औरत किसको ख़बर है
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− | हा हा, सीना फटा जाता है युधिष्ठिर
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− | सीना फटा जाता है...
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− | नहीं उल्लास नहीं, जो हो रहा प्रसार
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− | चीखे़ं हैं, है दुःख ही अपरम्पार
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− | बेटियाँ तारीख़ में तबदील हो गयी हैं।
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− | 29 मई: सूरज उस दिन वाक़ई छिपा और अँधेरा वक़्त पर आया। अँधेरे के जाने
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− | की तारीख़ नहीं आती। कोई बतलाता है कि साल गुज़र गया-एक और साल
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− | आने को है। अँधेरे में ढूँढ़ता हूँ नई तारीखे़ं।
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− | अँधेरे में सुनता हूँ जाने कितनी सदियों से चीख़ रही हैं आशिया और नीलोफ़र।
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− | बेटियाँ तारीख़ में तबदील हो गयी हैं।
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− | बेटियाँ बाग़ मंे जा रही हैं। मेहनती जवान बेटियों से मिलने उतर आये हैं रंगीले
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− | अब धरती पर। बेटियाँ बहते नाले में पानी छलकाती हुई नाचती हैं क़दम-क़दम।
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− | सुडौल चेहरों पर आँखें आपस में खेल रहीं हैं अनजाने ख़तरनाक खेल। पलकें उठीं
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− | हुई हैं मतवाली। यौवन से उल्लसित नदी जंगल गाते हैं आने वाली आज़ाद सुबह
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− | के गीत।
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− | अँधेरा उतरता है, अँधेरे ने वर्दियाँ पहनी हुई हैं। अँधेरे के हाथों में बन्दूकंे हैं। अँधेरे
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− | में चीख़ती बेटियाँ हैं।
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− | एक फ़ारेनसिक विशेषज्ञ का कहना है कि वह तारीख़ है जब एक आज़ाद सुबह को
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− | रोकने के लिए बेटियों को चीरफाड़ कर चबा रहे थे जानवर। युधिष्ठिर, कोई बिम्ब
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− | बताओ, कविता को लीक पर लाओ। कुछ गीत सा हो, कुछ प्रगीत सा हो। कुछ
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− | ऐसा कि आलोचक आत्मीय शब्द ढूँढ़ सकंे, कुछ तग़ज़्ज़ल हो, कुछ बात हो, कुछ
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− | बात हो।
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− | चीखें़ बेटियों की गूँजती रहीं पहाड़ों के बीच। बेचती रहीं चट्टानों को।
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− | सदियों से उफन रही तारीख़ की गूँज उमड़ती चली है। जवान लड़कियों को
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− | महाशून्य में धकेल धरती बंजर होती चली है।
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− | हर दिन गुज़रता है
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− | हत्यारों की सज़ा में एक दिन और कम हो जाता है
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− | इस तरह लोकतन्त्र हँसता रहता है ख़ुद पर खु़द
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− | 1984 - 1992 - 2002 - 2991 - 2991 - 4891 - छुक छुक छुक
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− | कि बसन्त का सामूहिक बलात्कार हो रहा है ख़बर आती है
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− | सस्ते टिकटों पर फूलों की योनियाँ बिक रही हैं ख़बर आती है
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− | कोई कहता है कि हर फूल होता है एक इनसान
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− | मसला जा रहा है हर ओर इन्सान
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− | देखो रीअल वर्चुअल गर्भवती औरतें नंगी नाच रहीं
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− | सचमुच इस रात की कोई सुबह नहीं
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− | गुड गवर्नेंस के सपनों में एक्स्टेसी जी रहे भले लोग हैं
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− | चारों ओर सन्तुष्ट लोग हैं
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− | कि हमेें इमेजिन्ड फ़ियर से घबराना नहीं चाहिए सन्तुष्ट लोग हैं
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− | क्या करूँ, डरपोक हूँ, डरता हूँ
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− | कहते हैं कि हिटलर का टेक्नोलोजी में कोई जोड़ नहीं था...
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− | धरती बंजर होती चली है। भक्षकों की टाप से उड़ते हैं बवण्डर, काँपते हैं माँओं के
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− | दिल। देर तक सुनाई ेती है आवारा कुत्तों की चीत्कार।
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− | दो कुत्ते एक चट्टान पर
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− | एक भूरा एक काला
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− | परस्पर से दो फुट दूर लेटे हुए हैं
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− | एक समान्तर विश्व है
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− | जहाँ भूरे वाले कुत्ते का रंग काला है
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− | वहाँ हो सकता है हत्यारे का रंग निहत सा
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− | वहाँ कौन कुत्ते की मौत मरता है
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− | पर मुझे किसी की मौत से क्या लेना
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− | मैं नास्तिक
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− | सृजन के अखिल नियम ही मेरे ईश्वर
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− | मैं किसी की मृत्यु की कामना नहीं करता
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− | काले या भूरे कुत्ते की तो क़तई नहीं
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− | एक दूसरे में बदल सकते हैं पाकिस्तान हिन्दुस्तान भी
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− | मसलन मैं हो सकता हूँ पाकिस्तानी
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− | और परवेज़ हूदभाई हिन्दुस्तानी
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− | प्रेम नफ़रत सब अदल-बदल सकते हैं
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− | फ़ितरत हमारी कि बार बार उठ खड़े हो हम कहते रहे
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− | कि हमारे समान्तर संसार में नफ़रत न होगी
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− | न होगा वहाँ कोई ओसामा, बुश, मोदी
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− | कोई तासीर इसलिए न मारा जाएगा
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− | कि उसने मेरी बेटी के माथे पर है हाथ रखा
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− | कि बेटियाँ वहाँ दौड़ती आएंगी
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− | मेरे सीने से लिपट जाएंगी
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− | और वापस लौट अपने नृत्यलोक में जाएंगीं
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− | ता ता थेई थेई ता ता थेई थेई गाएंगी
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− | महाविश्व के एक साल में दस ही मिनट मिले
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− | तो क्यों मिले सन्तापमय
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− | शब्द मिले अनन्त तो क्यों प्रलापमय
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− | नहीं उल्लास नहीं, जो हो रहा प्रसार
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− | चीखें़ हैं, है दुःख ही अपरम्पार
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− | दुःखों के धमाके दुःख उबलते
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− | दुःख तारे दुःख ग्रह दुःख ही जमते
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− | दुःखी देश दुःखी परिवेश
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− | रोता शिशु जैसा यह ब्रह्माण्ड है
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− | यहाँ दुःख का नाम इतिहास है
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− | दुःख ही ज्ञान विज्ञान विकास है
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− | चलो किसी और सृष्टि की तलाश में
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− | चलें
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− | आवाजें इर्द-गिर्द घूमती मिटाती अपनी प्यास हैं
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− | अशरीरी साँसों से भर जाता परिवेश है
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− | मैं रोता रहता हूँ
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− | रोते रोते ही
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− | जड़ होता रहता हूँ
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− | औरों का क्या खु़द का रोना भी
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− | दिखता नहीं एक समय के बाद
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− | मैं किस ज़िन्दगी की शुरुआत हूँ और किस का अन्त
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− | कौन जानता है मुझे कौन है नाज़िर मेरा
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− | यह मेरा मक़सद है मेरी नियति भी यही कि मैं
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− | तमाम रस्मों के खि़लाफ उठ खड़ा हूँ
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− | महज़ यह कहने कि मुझे चाहिए आज़ादी
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− | मैं पत्थर फेंका जाता हूँ मैं मर्सिया जनाज़ों में गूँजता हूँ
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− | अत्याचारियों की गोलियाँ जातीं मेरे आर-पार मैं सीना भूल जाता हूँ
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− | हर किस के सर पर मैं मौत मँडराता ह ूँ
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− | मैं ही जीवन मैं सपना घाटी की किशोरियों का हूँ
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− | मैं तुम्हारे खि़लाफ़ अगस्त्य के समय से खड़ा हूँ
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− | महज़ यह कहने कि मुझे चाहिए आज़ादी
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− | आवाज़ों में अकसर कोई पहचानी तरंग होती है
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− | क्षणिक कम्पन उँगलियों से उठकर हृदय के गहनतम कोनों में घूम आती है
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− | और देर रात दूर क्षितिज तक गूँजती है
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− | मैं जड़ होता रहता हूँ
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− | इस तरह क्रन्दन प्रलाप में कहाँ छिप रहे हो
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− | कोई सुबह सुबह चालीस सेकण्ड रोता है
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− | उसका रोना महज़ एक संख्या
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− | कौन है
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− | सुबह सुबह खु़द को सहलाता
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− | चालीस सेकण्ड बाद फोन कट गया
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− | ब्रह्माण्ड सन्न-सा रह गया
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− | क्या वह इसी ब्रह्माण्ड से आती आवाज़ थी
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− | एक आवाज़ यूँ गुम हो गई
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− | अनन्त काल तक अपनी अनदेखी पहचान रख गई
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− | जो भी वह था, उस के अन्दर भी प्रलाप करता हूँ बैठा एक मैं
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− | युवा कवियो, उसे छोड़ आओ गुड गवर्नेंस के चारों ओर बने पेशाबघरों में
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− | कोई शब्द हत्यारे का विकल्प ढूँढ़ लो तत्सम में
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− | और बुन लो एक कृत्रिम प्रेम कविता
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− | हो सकता है केन्या युगांडा नाईजीरिया से भगा पैसा
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− | थूक मैल में लिपटा वहाँ मनमोहनी गीतांे में हो रहा हो सुरबद्ध
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− | हत्या बलात्कार के बीच आ हा हा हा आरोह अवरोह में सम्बद्ध
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− | आदमी की आँखें नहीं हैं वहाँ
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− | आदमी सूअर से बदतर है वहाँ
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− | यश है वहाँ उन आधुनिक मन्दिरों में
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− | वहाँ तमगे हैं तुम्हारे इन्तज़ार में
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− | हा, हा सीना फटा जाता है
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− | इस वक़्त सभी मुहावरे हैं नाकाम
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− | युवा कवियो, हम कैसे अपनी पहचान करें
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− | किधर हैं हम खड़े
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− | अत्याचारियों के साथ या अपने ज़मीर के साथ
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− | हम खड़े हों पर कैसे हों हम खड़े
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− | जब प्रेम एक व्यर्थ ख़याल बन गया
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− | हर कोई चमड़े का इंच-इंच बेच रहा
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− | सामूहिक मैथुन ही बचा जीवन की परिभाषा में
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− | युवा कवियो, हम कैसे अपनी पहचान करें
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− | जिन्हें दिखता नहीं कि लोग मर रहे हैं
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− | कि प्राण विलुप्त हो रहा है धरती पर से अनायास
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− | वे कहते हैं कि मैं लिखता हूँ सायास
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− | एक औरत मरती है सड़क किनारे इश्तिहार में
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− | बच्चे हाँ बच्चे मरते हैं सड़क किनारे गू मूत में कीड़ों जैसे
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− | आदमी मरता है निरन्तर सभ्यता में
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− | बहुत कुछ बहुत सारे लोगों को नहीं दिखता
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− | समस्वर चिल्लाते हैं वे देखो यह है सायास लिख रहा
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− | जब कहता हूँ कविता नहीं है यहाँ
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− | पूछते हैं कविता है कहाँ
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− | क्यों लिखता है कोई बार बार
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− | बुनता है शब्द जाल निरन्तर प्रलाप
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− | विलाप विलाप विलाप विलाप
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