भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"संशय / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=लाल्टू | |रचनाकार=लाल्टू | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह=नहा कर नही लौटा है | + | |संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
00:52, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
हमेशा संशय रहता है
ठीक ही हूँ न
कितने लोगों को आज सूर्याेदय से अगले साल इसी दिन सूर्योदय तक
अपनी पहचान बदलनी है? फूल कुतरने की मशीनों की रफ़्तार बढ़ती
जा रही है। हम मिथक जीते हैं और तय करते हैं कि आज कौन बलि
चढ़ रहा है। एक दिन राजकुमार आएगा और राक्षस को मार डालेगा।
राक्षसों ने लाटरियाँ बन्द कर दी हैं।
किसी ने दोलन चक्रों पर काम किया है