भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शहर में शहर / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |अनुवादक= |संग्रह=नहा कर नह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:58, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
बारिश में बहती
नक्षत्रों के बीच
यात्राओं पर चली
मानव की गन्ध।
शहर में शहर की गन्ध है
मानव की गन्ध मशीनें बन
सड़क पर दौड़ती
बचते हम सरक आते
टूटे कूड़ेदानों के पास
वहाँ लेटी वही मानव-गन्ध
मानव-शिशु लेटा है
पटसन की बोरियों पर
गू-मूत के पास सक्रिय उसकी उँगलियाँ
शहर की गन्ध बटोर रहीं
जश्न-ए-आज़ादी से फिंके राष्ट्रध्वज में।