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"चढ़ाई की कविता / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर

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01:00, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

टीले पर चढ़ कर पेड़ों के पीछे छिपा तालाब दिखा जाता है। पेड़ों के पीछे साफ़
दिखता तालाब चढ़ाई के बाद गन्दा दिखता है। चढ़ाई के बाद हम तालाब की
गन्दगी में डूब जाते हैं। चढ़ाई के बाद हम बहुत गहराई में उतर जाते हैं।

टीले पर चढ़ने के लिए एक भीड़ चली आ रही है। भीड़ सूचना क्रांति और फेसबुक
से अनजान है। पर तालाब की गन्दगी का अभास भीड़ को है।

भीड़ में हर एक दूसरे को थामे हुए है। टीले की ओर आती हुई भीड़ एक लहर है।
आवाज़ की, ऊर्जा की, प्राण की, प्यार की।

टीले पर से हम देखते हैं प्यार का समन्दर चढ़ा आता है। गन्दा तालाब साफ़ होने
को तड़पता है।

तालाब में प्यार की परछाईं पड़ती है। धीरे धीरे बदलता है उसका रंग।