"पुल के नीचे बालक और आदमी / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर
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कुछ ढूँढ़ता है अपनी गठरियें में
कमर में काला धागा बँधा है
छोटे नर्म सिकुड़े कूल्हे
धूल सने
मुँह फेर कर पुल से जाती बसें देखता
शामिल होता है ‘देश और उसके लोग’
राष्ट्रीय छायाचित्र प्रतियोगिता में
वाहन आगे बढ़कर रुक गए हैं
बाहर से आया आदमी
कहता है-यह है कलकत्ता का फेमस जाम
दूसरा आदमी यह सोचकर परेशान
कि ऐसे गन्दे कूल्हों वाले शरीर की
मृगशावक आँखें!
अरसे तक आती हैं आदमी के ख़यालों में आँखें
एक दिन वह ज़िक्र करता है
इस बात का अपनी पत्नी से
पुल के नीचे नंगा बालक
खेलता है
सिगरेट पैकेट और चवन्नी के लाजेंस की पन्नी से
और आदमी सपनों में आते हैं
पहाड़, जंगल और तमाम
क़िस्म-क़िस्म के डर
आदमी उठता है
सपनों को जोड़ता दिन-दिन
पहाड़ बनता पहाड़ तब
और जंगल जंगल
समय से बेफ़िक्र खोलता है दरवाज़ा
पुल के नीचे से आता बालक नंगा
उसकी और उसकी पत्नी की गोद तक
दोस्तों, उनका डर एक ताज़ा माँ-बाप का है।