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"नदी अब तुम्हारे लिए / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर

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मेरे आगे न आओ
 
मेरे आगे न आओ
 
अब मेरी माँ बूढ़ी हो गई है
 
अब मेरी माँ बूढ़ी हो गई है
मैं किसका नाम लेकर चिल्लाऊँ।
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मैं किसका नाम लेकर चिल्लाऊँ
 
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तो फिर
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सोचा था तो फिर के बारे में कहानी लिखूँगा
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तो फिर कोई इन्सान
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फ़ार्मूला जिसके पास तैयार हर वक़्त
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किसी नई राह का
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चलना जिस पर लगे 30 मई को
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शहर का न्यूनतम तापमान 10 डिग्री होने जैसा
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या कोई जानवर
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जिसका शौक़ से किसी अंग्रेज़ीदाँ ने
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टामी या पुसी के बदले
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हिन्दुस्तानी बोलने वाले सनकी दोस्त का दिया रखा हो नाम
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अलग अलग विकल्पों में सबसे प्रिय था
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उस लड़की के इर्द-गिर्द ख़याल बुनना
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था तो फिर तकियाकलाम जिसका
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बहुत रूपसी नहीं पर दोस्त बढ़िया थी
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कहानी तो फिर बढ़ती चली थी
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अचानक एक दिन सुना जब उसे भी उठा ले गए
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तो फिर लिखने लगा हर रात कविता याद कर
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सदियों पुरानी वह बात कि
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जब-जब हो अधर्म छूता आसमान
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जागता हूँ उसके विनाश के लिए तो फिर।
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10:53, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

नदी अब तुम्हारे लिए कविता न लिखूँगा
तुम किनारे तोड़ कर आती हो तो
नदी नहीं रहती
तुम मेरे प्राण पर चाबुक की मार मारती हो
भागता हूँ तो तुम अन्तरिक्ष के
डरावने प्राणी की तरह लम्बी बाँहों से
घेर लेती हो मुझे

नदी तुम्हारे लिए कविता न लिखूँगा
मैं इन्तज़ार करूँगा
सौ साल कि तुम फिर धो जाओ मेरा बदन
और मैं लौटूँ कदम्ब के फूल इकट्ठे करता हुआ
कि तुम मुझे डराने मेरे साथ मेरे पीछे या
मेरे आगे न आओ
अब मेरी माँ बूढ़ी हो गई है
मैं किसका नाम लेकर चिल्लाऊँ