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"मुस्कान और मुस्कान / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर

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चार खूँटियों पर धातु का चौकोर बड़ा गमला।
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ये रात दिन उड़ने वाली लड़कियाँ
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महँगी मुस्कान ओढ़ती हैं
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मुस्कान मुझे महँगी पड़ती है
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मैं पैसे देकर खरीदता हूँ
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उफ़! लड़कियों को कितनी महँगी पड़ती है मुस्कान
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जो पैसों के लिए इसे ओढ़ती हैं
  
गमला मिट्टी का। गमला प्लास्टिक का।
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इस वक़्त प्रतीक्षाकक्ष में बैठी हैं
बहुत बड़ा नहीं, ज़्यादा से ज़्यादा छोटी बालटी।
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दो आपस में बात करती हैं
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तीसरी चिन्तामग्न है
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बात करने वाली परिचारिकाओं की उँगलियाँ शून्य में
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बातचीत की आकृतियाँ बनाती हैं
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चिन्तामग्न लड़की की उँगलियाँ चिन्ताओं को थामे हुए हैं
  
गमला कहने पर चौकोर आकार की कल्पना नहीं।
+
साढ़े नौ बजने को है
चौकोर बड़ा गमला गमला इसलिए कि इसमें पौधे।
+
चिन्ताएँ उठ कर चल पड़ी हैं
मिट्टी। मिट्टी में पौधे।
+
उँगलियों ने चिन्ताओं के बजाय और उँगलियों को थाम लिया है
सदाबहार पौधे।
+
मुस्कान और मुस्कान साथ चल पड़ी हैं।
गमले की चौकोर दीवारें धातु की सपाट छडे़ं।
+
कोनों में सीधा छड़। ऐंगल।
+
  
पौधों के पत्तों के बीच
 
बुजुर्ग अधगंजा आदमी जिसके सिर दाढ़ी के बाल सभी काले।
 
बालों में रंग डालने से दृश्य में अदृश्य उसकी बीवी, प्रेमिकाएँ, सभी हैं
 
दृश्य।
 
गमला और पौधे के बीच से दिखती है सृष्टि, एक सृष्टि।
 
दूसरी और तीसरी दृश्य सृष्टि गमले की दिशा से विपरीत ओर हैं।
 
कई सृष्टियाँ गमले की दिशा में हैं, अदृश्य हैं।
 
किस सृष्टि में है गमला
 
  
 
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11:33, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

ये रात दिन उड़ने वाली लड़कियाँ
महँगी मुस्कान ओढ़ती हैं
मुस्कान मुझे महँगी पड़ती है
मैं पैसे देकर खरीदता हूँ
उफ़! लड़कियों को कितनी महँगी पड़ती है मुस्कान
जो पैसों के लिए इसे ओढ़ती हैं

इस वक़्त प्रतीक्षाकक्ष में बैठी हैं
दो आपस में बात करती हैं
तीसरी चिन्तामग्न है
बात करने वाली परिचारिकाओं की उँगलियाँ शून्य में
बातचीत की आकृतियाँ बनाती हैं
चिन्तामग्न लड़की की उँगलियाँ चिन्ताओं को थामे हुए हैं

साढ़े नौ बजने को है
चिन्ताएँ उठ कर चल पड़ी हैं
उँगलियों ने चिन्ताओं के बजाय और उँगलियों को थाम लिया है
मुस्कान और मुस्कान साथ चल पड़ी हैं।