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"आदतन बीत जाएगा दिन / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर

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11:37, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

धीरे-धीरे हर बात पुरानी हो जाती है
चाय की चुस्की
प्रेमी का बदन
और अधकचरे इन्क़िलाब
आदत पड़ जाती है चिन्ताओं से बातचीत करने की
पुराने पड़ जाते हैं ख़याल

फिर कहना पड़ता है खु़द से
चलो चाय बना लें
पेट में डालने के लिए बिस्किट गिन कर दो ले लें

एक दिन आएगा जब लिखना चाहूँगा आत्म-तर्पण
शोक-गीत लिखने के लिए उँगलियाँ होंगी बेचैन
तब तक आदतन लोग देखेंगे मेरी कविताएँ जीमेल याहू पर
और आदतन ही बिना पढ़े आगे बढ़ जाएँगे
किसी को न ध्यान होगा कि कविताएँ आई नहीं
आदतन ही बीत जएगा दिन
जैसे बीत गए पचास बरस।