भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"महानगर का जीवन / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |अनुवादक= |संग्रह=नहा कर नह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:49, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण


शैशव बीता गर्भ में
जनम लिया इन्क़िलाब ज़िन्दाबाद कहते
देखने वाले आँखें मूँद हँसते थे

अधेड़ होना शुरू हुआ जब दो-एक साल बाद
अपराधबोधहीन संचालन-केन्द्र नाभि के नीचे आया

जैसे पहली बार समुद्र देखने पर जमा आतंक
सच हो गया हो
इस तरह बिखरने लगे चट्टान जैसे दोस्त
जीने लगे हम ऐनी आपा के उपन्यास

अधेड़पन के बुढ़ापे में बदलने का पहला एहसास
सुजाता से बातें करने पर हुआ
टूटने से बोझिल मन और शरीर एक साथ असुन्दर
बहुत परेशान थी प्यार करने का वक़्त नहीं था
जगह की माँग तब से करते रहे

फिर महीने-दर-महीने
कभी बीमार कभी यूँ सुस्ती में दीवारों से गुफ़्तगू
लिखता रहा महानगर
विकल्प बचा था समुद्र का आँखों तक चढ़ आना
सुजाता खड़ी है खीर भरा थाल लिए
नहा कर नहीं लौटा है बुद्ध।