भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितने आँसुओं का बोझ / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |अनुवादक= |संग्रह=नहा कर नह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:10, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

एक दिन धरती फेंक देगी हमें शून्य में
नहीं सहा जाता इतना बोझ
आसमान नहीं स्वीकारेगा हमारी यातनाएँ

कौन ब्रह्म हमंे सँभालने अपनी हथेली पसारेगा

धरती के इस ओर से उस ओर
दुर्वासा के क़दमों की थाप
काँप रहा गगन

एक व्यक्ति ढूँढ़ने निकला है
आदि आदिम को
धरती और आसमान विस्मित हैं
पूछ रहे एक दूसरे से कि किसकी ग़लती है
कि आदम की सन्तानें हैं इतनी बीमार

एक व्यक्ति योजनाएँ बना रहा है
कि वह हर बदले का बदला लेगा
बदलों की सूची बनाते हुआ वह रुक गया है
आदम तक पहुँच कर

क्यों फेंके थे पत्थर आदम ने
जब और कोई न था धरती पर उसके सिवा।