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"आज खिड़की से / खीर / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर
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12:12, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
आज खिड़की से झाँक रहे गुलमोहर से जाना
कि वह कविता में नहीं वाक़ई तुझे मिस कर रहा है
मेरी आँखों और गुलमोहर के बीच लम्बी गुफ़्तगू चली कि
तू होती तो क्या पढ़ा क्या लिखा जाता
कैसी चर्चाएँ होतीं और कैसे हमबदन होते हम
तब मैंने छुए अपने होंठ और पाया तेरे होंठों को वहाँ
मेरा सीना फटा है तेरे सीने से
आज खिड़की से झाँक रहे गुलमोहर से जाना
कि तू जहाँ भी है रे
मैं हूँ तेरे पास।