भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं तो बस तुम्हें चाहता था / खीर / नहा कर नही लौटा है बुद्ध" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |अनुवादक= |संग्रह=नहा कर नह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:13, 22 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

चमकती आँखें पर्दे पर स्थिर हैं
तुम्हारे हाथों में एक छड़ी है
तुम कर रही हो काश्मीर और सुरक्षा बलों पर बातें

मैं देखता हूँ दिन जब तुम्हारा
वर्तमान तुम्हारी कल्पना में नहीं था
बादल जो तुम्हारे पीछे होते थे
जब तुम इठलाती मैदान पर चलती थी
तुम्हारा प्रेमी जिसे मुझसे थी ईर्ष्या
जिसे अन्दाज़ा न था
कि तुम वैज्ञानिक नहीं अर्द्धसैनिक अफ़सर बनोगी
वर्दी में एक दिन छड़ी हाथ में
सिंहासन-नुमा कुर्सी पर बैठ करोगी
काश्मीर और सुरक्षा बलों पर बातें

यूँ दूरदर्शन पर तुम्हें देखते हुए
हिन्दुस्तान के हर घर की लड़की को देखता हूँ
और एक बार तुम्हारे लिए उमड़ता है
प्यार का सैलाब
और घर-घर चल पड़ती हैं
बातें तुम्हारी ही तरह
पर कैसा काश्मीर है यह
रेगिस्तान धरती पर स्वर्ग नहीं
लड़कियों की चीखे़ं रेत के बवण्डर बन गई हैं
मैं बस तुम्हें चाहता था
कौन ला रहा धरती भर की चीखें
तुम नहीं हो अब पर्दे पर
कुछ बिक रहा पर चीखें हैं कि गूँजती जा रही हैं।